Lungs_”श्वसन की हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है?”-Breathing System

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श्वसन क्या है?

मनुष्य में श्वसन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो फेफड़े द्वारा ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के आदान-प्रदान में भाग लेता है। जीवो में श्वसन तंत्र दुआरा ही वायु मे उपस्थित ऊर्जा को हम गृहण कर पाते है।

श्वसन प्रणाली परिभाषा

“सांस लेने की एक ऐसी प्रणाली जिसके द्वारा मनुष्य और जीव जंतुओं में ऊर्जा को शरीर के भीतर और अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकलने का कार्य करती है ऐसी प्रणाली को हम फेफड़े(श्वसन प्रणाली) बोलते हैं”

श्वसन की हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है
श्वसन की हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है

 

फेफड़े (फुफ्फुस) क्या है? और इसका क्या कार्य है?

फेफड़े मनुष्य के ऊपरी हिस्से जिसे वृक्ष गुहा या छाती कहते है उसमे विशाल रूप मे स्थित होता है फेफड़े एक विशाल हड्डियों के पिंजरे से घिरा होता है यह विशाल हड्डियों के पिंजड़े फेफड़ों को सुरक्षा प्रदान करते हैं इसको हम पसलियां भी बोलते है, इसके मध्य मे हृदय होता है और फेफड़ों के नीचे पित्ताशय (Gall Bladder) होता है ।

  कार्य फेफड़े मनुष्य के शरीर को ऑक्सीजन (oxygen) पहुँचाने का कार्य करती हैं इसके अलावा कार्बन-डाइऑक्साइड को शरीर से बाहर ले जाने का काम, यह एक तंत्र (System) की भाती कार्य करती करती है जिसको हम शवसन तंत्र कहते है।

शवसन तंत्र (Respiratory system)

हमारे पृथ्वी-जगत में जितने भी जीव जंतु या जीवित कोशिकाएँ (living cell) है उनमें श्वसन क्रियाएँ होती है अधिकतर जीवित कोशिकाओ मे ऑक्सीजन जीवन का आधार होता है और कुछ जीवित कोशिकाओ मे कार्बन डाइऑक्साइड जीवन का आधार होते है ये सभी प्रक्रियायें फेफड़ों द्वारा सम्भव हो पाती है।
जैसा कि आप इस लेख में जान ही चुके हैं कि मनुष्य के भीतर सबसे बड़ा महत्वपूर्ण अंग अगर कोई है तो वह हे फेफड़ा(फुफ्फुस)। वैसे तो हमारे इस श्वसन तंत्र के अंदर वह सभी अंग आते हैं जिसमें शरीर से होकर वायु का आदान-प्रदान होता है जैसे-

  1. 1-नासामार्ग
  2. 2-ट्रैकिया
  3. 3-ब्रोकोई
  4. 4-ब्रोकियोलॅस्
  5. 5-फेफड़े
  6. 6-ग्रसनी लेरिक्स या स्वरयंत्र आदि।
श्वसन की हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है
श्वसन की हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है

चलिए विस्तार से जानते हैं।

नासामार्ग (Nasal Passage)

नासा मार्ग यानी नाक_इसका मुख्य कार्य सूंघने से संबंधित है इसके अलावा इसका काम नाक से सासं लेने का भी है इसके अंदर की गुहा म्युकस कला (Mucous Membrane) मे होती हैं।ये सभी क्रिया म्युकस कला द्वारा संभव होती है इसका शरीर मे स्तर लगभग 1/2 लीटर,म्यूकस का स्राव होता है यह स्टार धूल के कण,गन्दगी, जीवाणु और अन्य सूक्ष्म जीवों आदि को शरीर के भीतर प्रवेश करने से रोकता है यह शरीर के अंदर प्रवेश करने वाली वायु में नमी और शरीर के तापमान को बराबर बनाये रखने का काम करती है।

ट्रैकिया (Trachea)

ट्रैकिया वक्ष गुहा (Thoracic Cavity) मे प्रवेश करा हुआ रहता है ट्रैकिया की दोनों तरफा शाखाओ को प्राथमिक ब्रोकियोल कहते है। दायाँ ब्रोकियोल आगे जाकर,तीन शाखाओ मे बंटकर,दायें और के फेफड़े मे प्रवेश करता है तथा बायाँ ब्रोकियोल आगे जाकर दो शाखाओ मे बंटकर बाये फेफड़े मे प्रवेश करता है।

ग्रसनी लेरिक्स या स्वरयंत्र (Larynx or voice box)

ग्रसनीग्रसनी नासा गुहा के ठीक पीछे वाली स्थान पर होता है।
स्वरयंत्र – यह श्वसन मार्ग का वह भाग है जो ग्रसनी को ट्रैकिया से जोड़ता है इसको स्वरयंत्र भी बोलते हैं।
इसके द्वारा ही मुंह गुहा से ध्वनि पैदा होती हैं स्वरयंत्र(लेरिक्स) के प्रवेश द्वार पर एक पतला पत्ती के समान कपाट होता है जिसको ईपिग्लोटीस (Epiglottis) कहते है। भोजन या कुछ भी निगहलते समय ग्लोटीस अपना द्वार बंद कर देता है जिस कारण निगहली हुआ भोजन श्वसन नली (मुंह के भीतर नासा छिद्र ) मे प्रवेश नही हो पाता हैं।

फेफड़े (Lungs)

छाती में फेफड़े दो भागों में विभाजित होते हैं जिनको हम वृक्ष गुहा कहते हैं इसकी रचना स्पंज के जैसे होती है और इसका रंग हल्का लाल (पिंक)रंग का होता है स्पंज होने के कारण फेफड़ा छोटा- बड़ा आसानी से हो पता है इसके स्पंजी होने के कारण ही फेफड़ों में सिकुड़न और फैलाव की प्रक्रिया हो पाती है, इन दोनों फेफड़ों के बीच में हमारा हृदय अंग जुड़ा होता है हृदय के भीतर आलिंद और निलय के कपाट से निकलने वाली शिराएँ, आगे जाकर फेफड़ों से और अन्य अंगो मे फैली (केशिकाएँ) होती हैं जिसमें फेफड़े द्वारा ऑक्सीजन और कार्बन ऑक्साइड का आदान-प्रदान होता रहता है।

दायाँ फेफड़े बायाँ फेफड़ों के कार्य की तुलना करे तो दायाँ फेफड़ा बायाँ फेफड़े की अंतर मे बड़ा होता है और ये दोनों फेफड़े एक पतली झिल्ली से घिरा रहता है जिसको हम प्लूरल मम्बब्रेन (Pleural Mambrane) कहते है।

श्वसन की हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है
श्वसन की हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है

यह भी पढ़े.. फेफड़ों के मध्य मे हृदय को भी विस्तार से समझे? 

श्वास सहायक अंग(Breathing Supporting Organs) के कार्य!

हमारे शरीर में ऐसे बहुत से अंग पाए जाते हैं जो हमारे शरीर के अंदर उत्पान गैस के विनिमय (वायु के आदान- प्रदान) मे भाग लेते भी हे और नही भी, लेकिन कुछ अंग,ऑक्सीजन युक्त वायु को शरीर मे प्रवेश कराने का यानी बाहर की वायु को फेफड़ों मे प्रवेश करने तथा अपशिष्ट कार्बन डाइऑक्साइड युक्त वायु को शरीर (फेफड़ों) के अंदर से बाहर निकलने में सहायता करते हैं इनका कार्य केवल शरीर में ऊर्जा को पूर्ण संचारित करना और खोई हुई ऊर्जा को विसर्जित कर देना होता है अत: इस प्रकार के कारक को श्वास सहायक अंग(Breathing Supporting Organs) कहते हैं इन अंगो को श्वास प्रणाली का  महत्वपुर्ण अंग माना जाता है।

 बाह्य नासा रंध्र(External Nares)

मनुष्य के मुख के ऊपर दो छिद्र रूप मे होते है ये दोनों छिद्र मुख गुहा के भीतर जीभ तालु के पास जाकर खुलता है ये एक जोड़ी नासा छिद्रों के बीच मे एक पट होता है, जिसे अंतर नासिका पट(Inter Nasal Septum) कहते है।

नासा पथ (Nasal Passage)

दोनों नासा रंध्र छिद्र आगे जाकर नासा पथ मे खुलता है नासा रंध्र से नासा पथ मे ओर नासा पथ के आगे के भाग को नासा वेशम कहते है नासा वेशम एक पतली श्लेष्मा झिल्ली तथा रोमो से बनी परत से ढका रहता है। इस श्लेष्मा झिल्ली के भीतर से एक श्लेष्मा का स्राव करती है जो बाहर से आने वाले वायु मे मिश्रित धूल के छोटे-छोटे कण को रोकता है यही नहीं जीवाणु व अन्य गन्दगी हानिकारक कण श्लेष्मा से चिपक कर रोमो मे अटक जाते है यानी शुद्ध और स्वच्छ वायु नासा छिद्र से नाक के भीतर प्रवेश करते हुए फेफड़ों मे जाता है (यानी नाक के बाहर हल्के हल्के रोमो मे अटक कर इस पथ के अगले भाग मे ही रह जाते है और स्वच्छ निस्यन्दित् वायु फुफ्फुस तक पहुँचती है) इस श्लेष्मा स्राव के कारण ही यह पथ नम बना रहता है अत: शरीर मे प्रवेश करने वाली वायु मे नमी बनी रहती हैं इसके अलावा.

  1. शरीर मे वायु तापमान,
  2. शरीर की उष्मा (गर्मी),
  3. शरीर मे हानिकारक तत्वों आदि।

को बराबर बनाये रखता है!
इसी नासा पथ द्वारा वायु (ऑक्सीजन) सीधे आपके गले में स्थित ग्रसनी में प्रवेश करती है। ग्रसनी मनुष्य के मुख पथ तथा नासा पथ से जुड़ा होता है यही कारण से हम मनुष्य मुख से भी श्वास ले पाते है।

सांसों की क्रिया विधि (Mechanism of Breathing)
सांसों की क्रिया विधि दो भागों में विभाजित होती हैं।

(A) :- नि: स्वसन् (Inspiration)
(B) :- उच्छस्वसन् (Expiration)

(A) :- नि: स्वसन् 

शरीर मे नि: स्वसन् एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे वायुमण्डल मे विद्यमा न वायु (ऑक्सीजन) वातावरण से वायु पथ द्वारा फेफड़ों मे प्रवेश करती हैं जिस कारण वृक्ष-गुहा का आयतन फेफड़ों मे हवा भरने के कारण बड़ा हो जाता है इस प्रक्रिया में फेफड़ों पर एक निम्न दाब का निर्माण हो जाता है यह निम्न दाब ही फेफड़ों में हवा को भरने का कारण बनती है। और  निम्न दाब का दाब तब तक रहता है जब तक वायु का दाब बॉडी के अंदर ओर बाहर के दाब के बराबर ना हो जाए।

(B) :- उच्छस्वसन् 

यह नि: स्वसन् के विपरीत होने वाली प्रक्रिया है इसमें वायु जो हमारे शरीर के भीतर शुद्ध रूप मे गई है वह फेफड़े द्वारा पुन: नासा पथ के मध्यम से वायुमंडल में वापस लौट जाती है बस इसमें शुद्ध रूप मे ली गई हवा के स्थान पर अपशिष्ट वायु के रूप में वातावरण मे लौटती हैं।


Conclusion (निष्कर्ष)
इस DrBioGkSci.Com के उल्लेख में हमने जाना की श्वसन क्रिया क्या है फेफड़े श्वसन क्रिया मे क्या भूमिका निभाते हैं और वह शरी सेर के किस स्थान पर स्थित होते हैं यह महत्वपूर्ण जानकारी हमें इस उल्लेख में जानने को मिली।

इस आर्टिकल मे यह भी जाने की जीवविज्ञान क्या है इसमें कौन – कौन से संघ आते हैं?

FAQ’s

Q,1- श्वसन का क्या उपयोग है?

Ans- श्वसन का उपयोग शरीर मे साफ हवा फेफड़ों के भीतर तथा अशुद्ध हवा फेफड़ों से बाहर का काम करती है। 

Q, 2-श्वसन की आवश्यकता क्यों होती है?

Ans- श्वसन की आवश्यकता शरीर मे ऊर्जा पैदा करने के लिए होती हैं।

Q, 3- मानव शरीर में कौन सा श्वसन?

Ans- मानव शरीर मे कोशकीय श्वसन।

Q, 4- कौन सी गैस श्वसन में सहायता करती है?

Ans- oxygen

Q, 5- फेफड़ों में रक्त पहुंचाने वाला अंग कौन सा है?

Ans- फुफ्फुस धमनी।

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