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[allintitle1]”kidney वृक्क की संरचना एवं क्रियात्मक इकाई क्या है?” Where is the kidney found?

Kidney

वृक्क की संरचना एवं क्रियात्मक इकाई क्या है

परिचय

 kidney – प्रत्येक व्यक्ति के अंदर चाहे वह पुरुष हो या स्त्री उसमें दो वृक्क अंक प्रकृति द्वारा शरीर के भीतर उपस्थित होते हैं जिनको हम गुर्दा या किडनी (kidney) के नाम से जानते है! जिनका कार्य शरीर में अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकलने का होता है यह वृक्क (kidney) अंग,उत्सर्जी अंग के रूप में, पूरे शरीर के सभी अंगों से लिए गए व्यर्थ पदार्थों को उत्सर्जी अंग (मल- मूत्र) द्वारा निकालकर शरीर को शुद्ध व स्वास्थ्य करने का काम करते हैं और इस प्रक्रिया में जीवधारी के शरीर से उपापचय प्रक्रमों में बने विषैला अपशिष्ट पदार्थों के निकासन को उत्सर्जन कहते हैं और यह प्रक्रिया उत्सर्जन तंत्र कहलाती हैं।

उत्सर्जन तंत्र (Excretory System)

“यह उत्सर्जन तंत्र उदरगुहा में, मध्यस्थ कशेरुक दंड के दोनों और स्थित होता है” अध्ययन के अनुसार बायाँ ओर का वृक्क दाहिने वृक्क से थोड़ा आगे की ओर स्थित होता है, दोनों वृक्क के ऊपरी हिस्से वाली जगह पर एक प्रकार की ग्रंथि जुड़ी रहती है जिसको हम अधिवृक्क ग्रंथि कहते हैं यह गोलाकार रूप में दिखाई दे सकती है इन प्रत्येक दोनों वृक्क (kidney) को रिनल धमनी द्वारा शरीर से रक्त प्राप्त होता है और इसी प्रकार रिनल शिराएँ वृक्क से रक्त को एकत्रित करके हृदय की पश्च् महाशिराओं में पहुंचने का काम करती है इसके साथ-साथ फेफड़ों तक, इन शिराओं का विस्तार होता है।

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मूत्रवाहिनी (Ureter)

दोनों वृक्क के भीतरी किनारे से एक मूत्र-वाहिनी नलिका निकलती है ये शिरा एक पतली पाईप के रूप मे होती है जो आगे जाकर मूत्राशय में खुलती है मूत्राशय मूत्र मार्ग द्वारा आगे जाकर शरीर के निचले भाग में जाकर खुलता है जहां से मूत्र द्वारा शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को शरीर के बाहर निकाल दिया जा सकता है इस प्रकार की पूरी प्रक्रिया को, उत्सर्जन की प्रक्रिया का नाम दिया जाता है।

स्त्री-पुरुष में वृक्क की बाह्य और भीतरी संरचना का वर्णन।

1- Kidney (वृक्क) की बाहरी संरचना

मनुष्य जन्म के शिशु काल के दौरान, वृक्क का आकार एक ‘सेम के बीज‘ के समान होता है यह लगभग 10 cm लम्बा, 5-6 cm चौडा तथा 2-5 cm मोटा होता है वही एक वयस्क पुरुषों की बात करे, तो वृक्क का भार 125-170 gm  होता है तथा स्त्री मे 115-155 gm होता है।

2- भीतर की किडनी संरचना

वृक्क के भीतर का किनारा धंसा हुआ होता है जैसे- अवतल दर्पण तथा इसका बाहरी किनारा उभरा हुआ जैसे- उत्तल दर्पण होता है, इस धंसे हुए स्थान को हाइलम (Hilum) कहते है आगे जाकर इससे मूत्र नलिका निकलती हैं तथा इसके द्वारा ही रीनल धमनी और रीनल शिरा भी जुड़ी रहता है।

3- वृक्क का अर्ध काट

यदि किडनी(वृक्क) का सीधा अर्ध काट करें, तो उसके अंदर की आंतरिक संरचना को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है वृक्क के भीतर जो धंसे हुए किनारे के माध्यम में कप के आकार की खोखली एक संरचना होती है जिसे हम पेल्विस के नाम से जानते हैं यह वृक्क का एक ठोस भाग होता है और यह दो भागों में बंटा होता है जो निम्न हे..

   इन दोनों विभाजित भागों के द्वारा हम एक वृक्क की पूरी संरचना को अच्छे से विस्तार पूर्वक समझ सकते हैं ।

प्रत्येक वृक्क(किडनी) में सूक्ष्म और लम्बी कुंडलित वृक्क नलिकाएं होती हैं जिनको नेफ्रॉन कहते हैं इसकी संख्या प्रत्येक वृक्क में लगभग 10 लाख होती है जो एक पतली-पतली शिरा के रूप में पूरे वृक्क में फैली होती है!

जितने भी वृक्क नलिकाएं होती हैं उनकी दो शिराएं होती हैं एक शिरा संग्रह नलिका में खुलता है और दूसरा शिरा प्याले जैसी संरचना बनता है जिसे बोमेन सम्पुट (Bowman’s Capsule) कहते हैं!

बोमेन सम्पुट (Bowman’s Capsule)

इस बोमेन सम्पुट के अंदर कोशिकाओं का एक गांठ (कोशिकाओं का गुच्छा) होती है जिसे केशिकागुच्छ या ग्लोमेरुलस कहते हैं यह रीनल धमनी की  चौड़ी अभिवाही धमनिका (Afferent Arteriole) की कोशिकाओं से बनता है इन कोशिकाओं के दूसरे वोले सिरे से मिलकर पतली अभिवाही धमनिका (Efferent Arteriole) बनाती हैं अभिवाही धमनी ही आगे जाकर बोमेन सम्पुट से बाहर निकलकर, वृक्क नलिका के चारों  ओर केशिका जाल बनाती हैं यही केशिकाऐ अन्त में रीनल शिरा से पुरी तरह जुड़ती हैं।

केशिकागुच्छ (Glomerulus)

शरीर मे सभी कार्यो का संचलन कोशिका द्वारा होता है ये कोशिकाये भीतरी अंगो से जुड़ी होती है तथा रक्त और पोषक तत्वों का पतली-पतली शिराओ के मध्यम से ऊर्जा भेजने का काम करती हैं जिस स्थान पर ये कोशिकाएँ आकर एक जगह, एक गाँठ के रूप मे एकत्रित होती है उसे  केशिकागुच्छ कहते है।

वृक्क नलिकाओं के निम्नलिखित भाग

रुधिर से जल का पृथक्करण

रुधिर से उत्सर्जी पदार्थ और रुधिर के भीतर उपस्थित जल को अलग करने के लिए बोमेन सम्पुट में परानिस्यदन द्वारा यह प्रक्रिया होती है

इसमें दोनों वृक्क (kidney) एक छलनी के रूप में कार्य करते हैं जो रक्त में आए अशुद्धियों को साफ करके मल- मूत्र द्वारा बाहर निकलते हैं तथा पोषक तत्वों को शरीर के अंदर उर्जा के रूप में विसर्जित करते हैं इस प्रकार बने इस फ़िल्टर से यूरिया, लवण, अमोनिया, विटामिन, ग्लुकोस आदि। भी होते है अतः वृक्क नलिका के शेष भाग फिल्ट्रेट से लाभदायक यौगिकों और जल का पूर्णतः अवशोषण करते हैं ।

ऊर्जा के रूप मे पुंन-संचार

वृक्क नलिकाओं से निकले अपशिष्ट पदार्थों के बाद उसमें उपस्थित पोषक तत्व और शुद्ध जल का पुन: शरीर के अंगों में विसर्जन होता है जिसमें वह पतली पतली शिराये उस अंग के चारों तरफ फैल कर जाल के रूप में ऊर्जा का संचार करती है यह सभी कार्य को वृक्क अपने माध्यम से स्वयं संचारित करता है।

भिन्न-भिन्न प्रकार की जंतुओं और उनमें उत्सर्जन की क्रिया

  1. A. एक कोशकीय जन्तु  – विसरण के द्वारा
  2. B. सीलेनट्रेटस – सीधे कोशिकाओं द्वारा
  3. C. मोलस्का – मूत्र अंग द्वारा
  4. D. चपटे कृमि – ज्वाला कोशिकाओं द्वारा
  5. E. कशेरूकी – मुख्यत्या वृक्क द्वारा
  6. F. ऐनेलिडा संघ के जंतु – वृक्क (Nephridia) द्वारा
  7. G. आर्थोपोडस –  मैलपिघियन नलिकाओं द्वारा
  8. H. पोरीफेरा संघ के जन्तु – विशिष्ठ नलिका तंत्र द्वारा

 

Conclusion (निष्कर्ष) :-

इस आर्टिकल के माध्यम से हमें जाना । कि वृक्क का मुख्य कार्य रक्त से प्लाज्मा को पूरी तरह छान कर शुद्ध बनाना होता है इसका मतलब इसमें से अनावश्यक और अनउपयोगी पदार्थों को जल की कुछ मात्रा के साथ मूत्र के द्वारा बाहर निकलने का कार्य वृक्क का होता है और हमने जाना कि वृक्क   ( kidney) की आंतरिक और बाहरी संरचना किस प्रकार होती हैं।

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